एयरपोर्ट और लच्छीवाला के जंगल में दर्जनों बेशकीमती खैर के पेड़ काट ले गए तश्कर, गहरी निद्रा में वन महकमा.. - Pahadi Khabarnama पहाड़ी खबरनामा
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एयरपोर्ट और लच्छीवाला के जंगल में दर्जनों बेशकीमती खैर के पेड़ काट ले गए तश्कर, गहरी निद्रा में वन महकमा..

देहरादून

एयरपोर्ट और लच्छीवाला के जंगल में दर्जनों बेशकीमती खैर के पेड़ काट ले गए तश्कर, गहरी निद्रा में वन महकमा..

डोईवाला। जौलीग्रांट एयरपोर्ट के पास स्थित बड़कोट वन रेंज और लच्छीवाला वन रेंज के जंगलों से तश्करों द्वारा दर्जनों बेशकीमती खैर के पेड़ काट लिए गए हैं।एयरपोर्ट के पास बड़कोट वन रेंज में देहरादून-ऋषिकेश मुख्य मार्ग से महज सौ मीटर अंदर जंगल में गुज्जरों के डेरे के पास चार से पांच फीट गोलाई के चार से पांच पेड़ खैर के काट लिए गए हैं।

वहीं देहरादून-हरिद्वार मुख्य मार्ग पर जीवनवाला में हाईवे से सौ मीटर अंदर लच्छीवाला वन रेंज में खैर तश्करों ने कोहराम मचाते हुए पांच से सात फिट गोलाई के दर्जनों पेड़ काट ड़ाले। बड़कोट वन रेंज के अधिकारी जहां कटे हुए पेड़ों का जुर्म काटने की बात कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं। वहीं लच्छीवाला वन रेंज के अधिकारियों को लाखों रूपए कीमत के दर्जनों पेड़ कटने की जानकारी तक नहीं है।

हरिद्वार और ऋषिकेश हाईवे व्यस्तम हाईवे है। जहां चौबीसों घंटे ट्रेफिक चलता रहता है। इसके बावजूद तश्करों का दर्जनों पेड़ काट ले जाना वन महकमे पर कई सवाल खड़े करता है। दोनों वन रेंजों से हाल ही में खैर के पेड़ काटे गए हैं। यदि दोनों वन रेंज के जंगलों को खंगाला जाए तो वहां कई और काले कारनामे सामने आ सकते हैं। इसमें वन महकमे की मिलीभगत से इंकार नहीं किया जा सकता है। क्योकि इतनी बड़ी घटना होने के बावजूद वन अधिकारियों को इसकी खबर नहीं है।

डोईवाला की वन रेंज हाथी की हत्या, अवैध खनन और अवैध पेड़ों के कटान को लेकर हमेशा से सुर्खियों में रही हैं। अब दो वन रेंजों से दर्जनों खैर के पेड़ काट लिए गए हैं। जिसमें बड़कोट वन रेंज के अधिकारियों को पेड़ कटने की जानकारी है। लेकिन लच्छीवाला वन अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं है। बड़कोट रेंजर डीएस रावत ने कहा कि खैर के काटे गए पेड़ों का जुर्म काटकर तश्कर की तलाश की जा रही है। जबकि लच्छीवाला रेंजर घनानंद उनियाल ने कहा कि उन्हे दर्जनों खैर के पेड़ कटने की कोई जानकारी नहीं है।

सबूत मिटाने को ढूंट भी काट दिए गए

बड़कोट वन रेंज में तश्करों या वन अधिकारियों ने सबूत मिटाने को खैर के ढूंट पर भी कुल्हाड़ियां चला दी हैं। खैर के ढूंट काटने के बाद उन पर मिट्टी का लेप लगाया गया है। और ढूंटों को पत्तों से ढक दिया गया है। इतना ही नहीं पेड़ों के छिंगाव को भी वहां से हटा दिया गया है। जबकि लच्छीवाला वन रेंज की बात करें तो यहां दर्जनों पेड़ों के तीन से चाट फिट ऊंचाई के ढूंट साफ दिखाई दे रहे हैं। कटे पेड़ों का छिंगाव भी मौके पर ही पड़ा हुआ है। वहीं कुछ पेड़ तश्करों द्वारा काटकर गिरा तो दिए गए हैं। लेकिन उन्हे तश्कर ले जाने में नाकाम रहे हैं। वो कटे पेड़ वहीं गिरे पड़े हैं।

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मशीन से काटे जा सकते हैं खैर के बेशकीमती पेड़

बड़कोट और लच्छीवाला वन रेंज से जिन खैर के पेड़ों को काटा गया है। उन्हे मशीन से काटे जाने की संभावनाएं हैं। यह मशीन काफी छोटी होती है। और आसानी से उपलब्ध है। इसे ऑन लाइन भी मंगाया जा सकता है।
इस मशीन में पेट्रोल भरकर बड़ी जल्दी पेड़ों को काटकर गिराया जा सकता है। यह मशीन दस हजार रूपए तक में आसानी से मिल जाती है।

जंगल के अंदर गई है गाड़ी

जंगल के अंदर निशान भी बने हुए हैं। जिससे साफ पता चलता है कि यहां माल लेने के लिए गाड़ी अंदर तक गई है। और यह कार्य वन विभाग के मिलीभगत के संभव नहीं हो सकता है।

बेशकीमती लकड़ी के कारण चल रही खैर के पेड़ों पर आरियां

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खैर के पेड़ों से कत्था बनाया जाता है। और इसका इस्तेमाल कई चीजों में होता है। इसलिए इसकी लकड़ी सागौन से मंहगी या बराबर होती है। पुराने लोग जब घरों में गैस सिलेण्डर नहीं होते थे। तब भी खैर को नहीं काटते थे। और गांवों में बुजुर्ग कहते थे कि खैर का पेड़ काटना मतलब खून करने जैसा है। लेकिन वर्तमान में सैकड़ों खैर के पेड़ों को बेखौफ काटा जा रहा है।

जंगल अंदर इतने खाली हैं कि खेल मैदान बना लो

बड़कोट, लच्छीवाला और थानों के जंगल जैसे मुख्य मार्ग किनारे दिखाई देते हैं। वैसे अंदर नहीं हैं। जंगल के अंदर जाने पर बड़े बड़े मैदान दिखाई देते हैं। ऐसा लगता है मानों ये किसी की प्राईवेट जमीन हो। तस्करी और जंगलों में आग लगने से हर वर्ष जंगल में पेड़ों की संख्या लगातार कम हो रही है। जिस कारण भयंकर गर्मी और सूखे जैसी स्थिति पैदा होने लगी है। इन्होंने कहा बड़कोट वन रेंज में खैर के जो पेड़ कटे हैं। उनका जुर्म काटकर पेड़ काटने वाले तश्कर की तलाश की जा रही है। जबकि लच्छीवाला वन रेंज में खैर के पेड़ काटे जाने का मामला उनके संज्ञान में नहीं है। नितिनमणी त्रिपाठी, डीएफओ देहरादून।

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