HUDKIYA BOL: उत्तराखंड की संस्कृति में खास है रोपाई और 'हुड़किया बौल' का महत्व, जानें खासियत... - Pahadi Khabarnama पहाड़ी खबरनामा
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HUDKIYA BOL: उत्तराखंड की संस्कृति में खास है रोपाई और ‘हुड़किया बौल’ का महत्व, जानें खासियत…

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HUDKIYA BOL: उत्तराखंड की संस्कृति में खास है रोपाई और ‘हुड़किया बौल’ का महत्व, जानें खासियत…

देहरादूनः Uttarakhand Folk Culture उत्तराखंड की लोक संस्कृति और रीती रिवाजों का अपना अलग महत्व है। हालांकि धीरे-धीरे युवा इन रीती रिवाजों से दूर होते जा रहे है। उत्तराखंड अपनी लोक संस्कृति Folk Culture को लेकर हमेशा जाना जाता है। यहां की प्राचीन संस्कृति जनमानस में रची बसी है। कुछ जंगहों पर आज भी उन परमपराओं को निभाया जा रहा है। जिसमें से एक है रोपाई से जुड़ा (HUDKIYA BOL)  ‘हुड़किया बौल’। हुड़किया बौल का अपना अलग महत्व है। इसकी Hudkiya Bol Specialty विशेषता और कहानी आइए जानते है।

बता दें कि उत्तराखंड में लोकगीतों (folk songs in uttarakhand) की समृद्ध परंपरा रही है। हुड़किया बौल की परंपरा खेती और सामूहिक श्रम से जुड़ी है। ” बोल ” का शाब्दिक अर्थ है श्रम , मेहनता हुड़के के साथ श्रम करने को हुड़किया बोल या हुड़की बोल नाम दिया गया है। कुमाऊँ क्षेत्र में हुड़किया बोल की परंपरा काफी पुरानी है । सिंचित भूमि पर धान की रोपाई (Transplantation of paddy) के वक्त इस विधा का प्रयोग होता है । लेकिन अफसोस है कि यह परंपरा सिमटती कृषि के साथ ही कम होती चली जा रही है।

ये है हुड़किया बौल

पहले भूमि के देवता भूमियां, पानी के देवता इंद्र, छाया के देव मेघ की वंदना से शुरुआत होती है. फिर हास्य व वीर रस आधारित राजुला मालूशाही, सिदु-बिदु, जुमला बैराणी आदि पौराणिक गाथाएं गाई जाती हैं. हुड़के को थाम देता कलाकार गीत गाता है, जबकि रोपाई लगाती महिलाएं उसे दोहराती हैं. हुड़के की गमक और अपने बोलों से कलाकार काम में फुर्ती लाने का प्रयास करता है।

  • ऐसे होते हैं हुड़किया बौल के स्वर
  • सेलो दिया बितो हो धरती माता
  • दैंणा है जाया हो भुमियां देवा
  • दैंणा है जाया हो धरती माता
  • हैंणा है जाया हो पंचनाम देवा
  • सेवो द्यो बिदो भुम्याल देवा..

लोक गायक हुड़के की थाप पर देवताओं के आह्वान के साथ किसी लोकगाथा को पड़ता है। बेहतर खेती और सुनहरे भविष्य की कामना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि हुड़किया बौल के चलते दिन-भर रोपाई के बावजूद थकान महसूस नहीं होती। हुड़के की थाप पर लोकगीतों में ध्यान लगाकर महिलाएं तेजी से रोपाई के कार्य को निपटाती हैं। समूह में कार्य कर रही महिलाओं को हुड़का वादक अपने गीतों से जोश भरने का काम करता है। यह परम्परा पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी कुमाऊं के कई हिस्सों में जीवंत है। रामनगर के ग्रामीण इलाकों में बसे लोगों ने आज भी इस संस्कृति को जिंदा रखा है। यहां किसान हुड़किया बौल पर धान की रोपाई करते है। हुड़किया बौल पर धान की रुपाई ये नजारा देखने को मिलता  है।

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