चमोली
उत्तराखंड: खतरे के निशान पर रैणी गांव ग्रामीणों ने उठाई पुनर्वास की मांग…
चमोली: चिपको आंदोलन में मुख्य भूमिका निभा ने वाली गौरा देवी की आशंका सच साबित होते दिखाई दे रही है। उन्होंने ही रैणी गांव से यह आंदोलन शुरू किया था। यह आंदोलन 70 के दशक में गौरा देवी के द्वारा स्थापित किया गया था जिसमें उन्होंने पैडों के संरक्षण हेतु यह मुहिम शुरू की थी। उन्हें यह मालूम था कि यदि पेड़ों को काटा गया तो पहाड़ सुरक्षित नहीं रहेंगे, आज उसी रैणी गांव पर संकट के बादल नज़र आ रहे है। जल्द ही यह गांव सिर्फ एक ऐतिहासिक गांव रह जाएगा। जोशीमठ से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रैणी गांव में 55 से अधिक परिवारों का रैन बसेरा है।
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7 फरवरी को ऋषि गंगा में जलस्तर बढ़ने के कारण रैणी गांव भूस्खलन की चपेट में आ गया था। जिस में गांव के निचले हिस्से और निती घाटी कि ओर से भूस्खलन शुरू हो गया था। जिसके चलते हजारों संरक्षित पेड़ बाढ़ की चपेट में आ गए। 14 जून को को भारी बारिश के कारण गांव का निचला हिस्सा और मलारी हाईवे का 40 मिटर हिस्सा टूट कर धौली गंगा में समाहित हो गया था। जिस के बाद गांव में भूस्खलन का दायरा और भी बढ़ गया।मलारी हाईवे के पुनः निर्माण कार्य के लिए सीमा सड़क संगठन (बी.आर.ओ ) के पास भूमि नहीं बची तो रैणी गांव के खेत अथवा मकानों को ध्वस्त कर हाईवे निर्माण कि योजना बनाई गई। जिस पर ग्रामीणों ने आशंका जताई। जिस पर ग्रामीणों ने पहले गांव के पुनर्वास की मांग उठाई है।

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