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फुलवारी: देहरादून में साहित्य और संस्कृति का संगम

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फुलवारी: देहरादून में साहित्य और संस्कृति का संगम

देहरादून के शांत और सौंदर्यपूर्ण परिवेश में बसा फुलवारी, जो उत्तराखंड की पहली महिला मुख्य सचिव राधा रतूड़ी और पूर्व डीजीपी अनिल रतूड़ी का निवास है, शनिवार शाम को साहित्य और संस्कृति का एक जीवंत केंद्र बना। यहाँ आयोजित 22वीं पुस्तक चर्चा ने एक बार फिर साहित्यप्रेमियों के दिलों को छू लिया।

इस बार चर्चा का केंद्र थी लेखिका मंजू काला की पुस्तक “बैलेड्स ऑफ इंडियाना: अल्मंडा टू चेट्टीनाड” , जो भारत की सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधता को एक सूत्र में पिरोती है। यह पुस्तक न केवल एक यात्रा वृत्तांत है, बल्कि भारत के लोकजीवन, परंपराओं, और आत्मीयता का एक मार्मिक चित्रण है, जो पाठक को भावनात्मक और बौद्धिक स्तर पर जोड़ता है।

पुस्तक का सार: भारत की आत्मीय यात्रा

“बैलेड्स ऑफ इंडियाना: अल्मंडा टू चेट्टीनाड “भारत के उत्तरी छोर से दक्षिणी सिरे तक की एक ऐसी यात्रा है, जो भौगोलिक सीमाओं से परे, संस्कृति और मानवीय संवेदनाओं की गहराई को छूती है। लेखिका मंजू काला ने इस पुस्तक में भारत की विविधता को एक काव्यात्मक और संवेदनशील ढंग से प्रस्तुत किया है। पुस्तक में अल्मंडा की ठंडी हवाओं, हरे-भरे खेतों, और ग्रामीण जीवन की सादगी से लेकर चेट्टीनाड की मसालों से सुगंधित रसोई, मंदिरों की नक्काशी, और समृद्ध परंपराओं तक का चित्रण है। यह केवल एक यात्रा वर्णन नहीं, बल्कि भारत के लोकगीतों, खान-पान, वेशभूषा, और लोककथाओं का एक ऐसा कोलाज है, जो पाठक को न केवल देखने-सुनने, बल्कि भारत को जीने और महसूस करने के लिए प्रेरित करता है।

लेखिका ने भारत की सांस्कृतिक एकता को इस तरह उभारा है कि यह पुस्तक एक साहित्यिक कृति के साथ-साथ एक सांस्कृतिक दस्तावेज बन जाती है। यह पाठकों को याद दिलाती है कि भारत केवल नक्शे पर खींची गई रेखाओं का देश नहीं, बल्कि विविधता में निहित एकता की गहन अनुभूति है। पुस्तक का प्रत्येक पृष्ठ पाठक को भारत के विभिन्न रंगों, स्वादों, और ध्वनियों के साथ एक आत्मीय संवाद में ले जाता है।

सुधारानी पाण्डेय जी

फुलवारी में आयोजित इस परिचर्चा में साहित्य और संस्कृति के प्रति गहरी रुचि रखने वाले विद्वानों और साहित्यप्रेमियों ने हिस्सा लिया। गढ़वाल विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति और प्रख्यात साहित्यकार सुधारानी पांडेय ने पुस्तक की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह एक सराहनीय प्रयास है, जो भारत की सांस्कृतिक समृद्धि को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करता है। हालांकि, उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि पुस्तक में कुछ कमियाँ हैं। उनके अनुसार, इसमें भारत के सभी प्रदेशों का समान प्रतिनिधित्व नहीं हो पाया है। विशेष रूप से, बनारस घराने की समृद्ध संगीतमय परंपरा और ओडिशा की प्राचीन पौराणिक संस्कृति का उल्लेख न होना एक कमी के रूप में उभरता है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस तरह की कृति में प्रत्येक राज्य की सांस्कृतिक विशेषताओं को शामिल करना भारत की समग्र सांस्कृतिक छवि को और सशक्त बनाता। उनका यह कथन पुस्तक की गहराई को और बढ़ाने की दिशा में एक रचनात्मक सुझाव था, जो साहित्यिक चर्चाओं की सार्थकता को रेखांकित करता है।

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अनिल रतूड़ी जी

वहीं, पूर्व डीजीपी अनिल रतूड़ी ने पुस्तक के एक विशिष्ट उल्लेख पर अपनी आपत्ति दर्ज की। उन्होंने बताया कि लेखिका ने केरल के नंबूदरी ब्राह्मण और नायर ब्राह्मण को एक समान माना है, जो ऐतिहासिक और सामाजिक दृष्टि से सही नहीं है। अनिल रतूड़ी ने इस तथ्य पर जोर दिया कि नंबूदरी और नायर समुदायों की अपनी अलग-अलग सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान है। नंबूदरी ब्राह्मण, जो वैदिक परंपराओं और संस्कृत विद्या के संरक्षक रहे हैं, और नायर, जो केरल की सामाजिक संरचना में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं, दोनों की परंपराएँ और भूमिकाएँ स्पष्ट रूप से भिन्न हैं। इस तरह की तथ्यात्मक अशुद्धि, उनके अनुसार, पुस्तक की विश्वसनीयता पर सवाल उठा सकती है। उनकी यह टिप्पणी न केवल पुस्तक के प्रति उनकी गहरी संलग्नता को दर्शाती है, बल्कि साहित्य में तथ्यों की शुद्धता के महत्व को भी रेखांकित करती है।

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रवि शंकर जी

पूर्व मुख्य सचिव रवि शंकर ने कहा कि भारत के केरल और तमिलनाडु की खानपान परंपराएँ, रीति-रिवाज और लोकजीवन को जिस गहराई से पुस्तक में समाहित किया गया है, वह न केवल प्रशंसनीय है, बल्कि समाज की सांस्कृतिक विविधता को समझने के लिए अनिवार्य भी है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि ऐसी रचनाएँ पीढ़ियों को यह अहसास कराती हैं कि भारत की शक्ति उसकी विविधताओं और साझा परंपराओं में ही निहित है।

पुस्तक परिचर्चा के मंच पर बैठी मुख्य प्रश्नकर्ता रेखा नेगी तथा साहित्यकार देवेश जोशी, शिव मोहन सिंह, अनुराधा जुगरान आदि ने भी इस पुस्तक से संबंधित प्रश्न किए।

फुलवारी: साहित्य का पवित्र स्थल

फुलवारी में आयोजित यह 22वीं पुस्तक चर्चा एक बार फिर साबित करती है कि यह स्थान केवल एक भौतिक निवास नहीं, बल्कि विचारों, संवेदनाओं, और साहित्यिक संवाद का एक पवित्र स्थल है। राधा रतूड़ी और अनिल रतूड़ी के आतिथ्य में यहाँ होने वाली प्रत्येक चर्चा न केवल साहित्य को जीवंत करती है, बल्कि समाज को संस्कृति और इतिहास के प्रति संवेदनशील बनाती है। यहाँ उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह विद्वान हो या सामान्य पाठक, अपने विचारों और अनुभवों के साथ इस साहित्यिक यज्ञ में अपनी आहुति देता है।

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