उत्तराखंड
उत्तराखंड: पुलिस कर्मियों की ग्रेड पे कटौती बनती जा रही सरकार की गले की फांस…
नरेन्द्रनगर: पृथक उत्तराखंड आंदोलन के पीछे पहाड़ वासियों के कई अरमान और सपने थे। दलगत राजनीति से कहीं दूर प्रदेश के स्वत:स्फूर्त आंदोलन में तब प्रदेश के सरकारी कर्मचारी बेहिचक कूद पड़े थे। उत्साह,उमंग,व पृथक राज्य प्राप्ति का लक्ष्य हासिल करने के जुनून से लवरेज उस ऐतिहासिक आंदोलन की बानगी तब देखते ही बनती थी। मगर पृथक उत्तराखंड राज्य आंदोलन के पीछे जो मकसद और अवधारणा थी, वह मटिया मेट होती जा रही है। इसका ताजा उदाहरण वर्ष 2001 व 02 में उत्तराखंड पुलिस में भर्ती हुए जवानों का ग्रेड पे मसला है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2000 नवंबर को उत्तर प्रदेश से अलग हुए उत्तराखंड पुलिस विभाग में यूपी की पुलिस नियमावली ही लागू थी। तब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड पुलिस विभाग में सेवा के दौरान 10,16 व 26 वर्षों की सेवा पर पुलिस आरक्षियों को क्रमशः 2400,4600 व 4800 ग्रेड वेतन दिया जाना अनुमन्य था।
पुलिस आरक्षियों की ग्रेड वेतन में प्रदेश सरकार जबरन फंसा रही है पेंच
जाहिर सी बात है कि बरसों -बरसों तक पदोन्नति के राह देखते-देखते चौराहे पर लठ्ठ हाथ में लिए बुजुर्ग सिपाही बगैर पदोन्नति के चेहरे पर उदासी लिए सेवानिवृत्त हो जाता था। नियम कानूनों में बंधे पुलिस जवानों ने कई बार सरकारों की उपेक्षा पूर्ण रवैए के खिलाफ एकजुट होकर अपनी आवाज को बुलंद करना चाहा मगर विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में सत्तारूढ़ दलों की सरकारों ने पुलिस सिपाही को लॉलीपॉप या कहें झुनझुना थमा कर ना सिर्फ पुलिस जवानों के साथ बल्कि उनके परिवारों के साथ भी नाइंसाफी की है।
इस लिखित आदेश को क्यों नहीं दी जा रही तवज्जो
सवाल यह उठता है कि जब कई बार पुलिस ने अपने प्रति सरकार के अड़ियल रवैये के खिलाफ नाखुशी जताई तो बमुश्किल उन्हें 10,16 तथा 26 बरसों की निरंतर सेवा पर क्रमशः 2400,4600 तथा 4800 ग्रेड वेतन अनुमन्य किया गया। उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद उत्तराखंड में भी पुलिस आरक्षियों के लिए ग्रेड पे का यही नियम लागू था। उत्तराखंड सरकार ने वर्ष 2001 तथा 2002 में नियुक्त पुलिस आरक्षियों को छठे वेतन में 10,20 व 30 वर्षों की सेवा पर दिए जाने वाले ग्रेड पे 2400, 4600 व 4800 अनुमन्य किया है। अब सवाल यह उठता है कि 2001 तथा 2002 में नियुक्त पुलिस आरक्षियों को जब 2021 में 20 साल की सेवा अवधि पर ग्रेड पे 4600 देने का प्रावधान है, तो इसे घटाकर 2800 करने का क्या तुक बैठता है। यह बात पढ़े लिखे लोग तो क्या गांव के ग्रामीणों के गले से नीचे भी नहीं उतर पा रही है।
2800 ग्रेड पे पर हर जवान को प्रति माह 8 से 10 हजार का हो रहा है नुकसान
पुलिस जवानों का 4600 ग्रेड पे का हक मारकर यदि सरकार उन्हें 2800 ग्रेड पे अनुमन्य करती है, तो यह नुकसान 1800 का नहीं प्रतिमाह 8 से 10 हजार के बीच बैठ रहा है। 20 वर्षों की सेवा पर 4600 ग्रेड पे की फिक्सेशन में आरक्षी का मूल वेतन 44,900 के आसपास बन रहा है ,जबकि 1800 ग्रेड वेतन पर कटौती से आरक्षियों का मूल वेतन 39,000 के लगभग बैठ रही है। जाहिर सी बात है कि प्रति माह 6 हजार का नुकसान मूल वेतन में तथा डीए व एच आर ए को जोड़ कर एक सिपाही को 8 से 10 के बीच प्रति माह वेतन में नुकसान होगा।
तुलनात्मक अध्ययन से सरकार का रवैया पुलिस के प्रति स्पष्ट होता है
चौथा वेतनमान वर्ष 1986 में लागू हुआ था। प्राइमरी सहायक अध्यापक को 364 रुपया मूल वेतन जबकि पुलिस सिपाही को ₹1 बढ़ाकर 365 मूल वेतन था। छठे वेतनमान में सहायक अध्यापक का मूल वेतन 9300 से 34000 किया गया जबकि पुलिस कांस्टेबल को 5200 से 20200 दिया गया। जबकि सातवें वेतनमान में प्राइमरी के सहायक अध्यापक को 44,900 स्टार्टिंग मूल वेतन और पुलिस कांस्टेबल को 21,700 मूल वेतन पर फिक्स किया गया है। 86 से लेकर 2020 तक प्राइमरी का सहायक जो कभी पुलिस कांस्टेबल से मूल वेतन में ₹1 पीछे हुआ करता था, वही अध्यापक आज पुलिस कांस्टेबल के मुकाबले मूल वेतन में दोगुना ऊपर पहुंच चुका है। इससे साफ झलकता है कि सरकार पुलिस के प्रति कितना संवेदनशील है, जो कानून व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त बनाने और देश की आंतरिक सुरक्षा में दिन-रात जुटी हुई है।
आखिर कोरोना में कैसे बना रहेगा पुलिस का मनोबल
कोरोना महामारी के दौरान फ्रंट फुट पर काम करने वाले कोरोना योद्धाओं की अग्रिम पंक्ति में खड़े पुलिस बल का मनोबल किसी भी तरह से गिरना नहीं दिया जाना चाहिए। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो सरकार 4200 ग्रेड पे देने की मंशा बना रही है। जिसे स्वीकार करने को पुलिस सिपाही कतई तैयार नहीं होगा साफ सी बात है कि ज्यादातर सिपाही प्रतिवर्ष इंक्रीमेंट पाते हुए इस आंकड़े को भी पार कर चुके हैं,तब भला वे इसे कैसे स्वीकार कर लेंगे? चूंकि फिक्सेशन ग्रेड पे पर आधारित होना है। सरकार को चाहिए कि वेतन ढांचे में इस तरह की खामी कतई ना पालें कि जो कर्मचारी आज से 34 वर्ष पहले पुलिस कांस्टेबल से ₹1 मूल वेतन में पीछे था, वह आज मूल वेतन में पुलिस कांस्टेबल से 2 गुना आगे बढ़ा दिया गया हो। सरकार की इसी सोच के कारण खाकी बदनाम है। उम्मीद की जानी चाहिए कि पुलिस कांस्टेबल के इस संवेदनशील मसले पर पक्ष- विपक्ष के विधायकों से लेकर आम जनता समर्थन में है, तो फिर सरकार पीछे क्यों? पुलिस का वाजिब हक समझते हुए सरकार को पुलिस के प्रति उदार दिल अपनाते हुए ग्रेड पे का मसला तत्काल हल करने की कार्रवाई कर देनी चाहिए।

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