उत्तराखंड
मत्स्य पालन गतिविधि से चंपावत की महिलाएँ सामाजिक व आर्थिक रूप से हुई सशक्त
जनपद चंपावत में ग्रामोत्थान परियोजना के अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के लिए मछली पालन व्यवसाय आजीविका का एक महत्वपूर्ण और सफल स्रोत बनकर उभरा है। इस पहल ने स्थानीय महिलाओं को सशक्त किया है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी है।
आज की कहानी विकासखण्ड बाराकोट के एक छोटे से गाँव-ढटी की है, जहाँ लोगों का मुख्य व्यवसाय भौगोलिक विषमताओं के कारण पशुपालन तक ही सीमित था तथा रोजगार के साधन उपलब्ध नही थे जिसके कारण ग्रामीण परिवारों के पास आजीविका चलाने के लिए अन्य विकल्प नहीं थे। इसी को ध्यान में रखते हुए समूह की महिलाओं ने मिलकर एक अद्भुत पहल शुरू की और मछली पालन के व्यवसाय में सफलता की मिसाल कायम की।
सिद्ध बाबा समूह की महिलाओं ने अपनी कठिनाईयों को पार करते हुए न केवल अपनी आर्थिक स्थिति को सशक्त किया, बल्कि गाँव की अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन गई। स्वयं सहायता समूह की महिलाएं अपनी आजीविका बढ़ाने के लिए मछली पालन का कार्य कर रही थी। शुरुआत में, उनकी परिस्थितियाँ मुश्किल थीं। अपने व्यवसाय को बढ़ाने तथा आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिए उन्हे आर्थिक सहयोग एवं उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता थी।
परियोजना प्रारम्भ होने के पश्चात् ग्राम ढटी में परियोजना द्वारा समय-समय पर समूह एवं ग्राम संगठन स्तर की बैठक की गयी। बैठको में परियोजना की सम्पूर्ण जानकारी के साथ-साथ आर्थिक रुप से पिछडे परिवार की महिलाओं को परियोजना द्वारा मानकानुसार उद्यम आधारित गतिविधियों को करने हेतु प्रेरित किया गया।
बैठकों के माध्यम से महिलाओं को परियोजना के अन्तर्गत संचालित व्यक्तिगत एवं समूह स्तरीय उद्यम स्थापना के साथ-साथ परियोजना द्वारा दी जाने वाली सहयोग राशि, बैंक द्वारा दिए जाने वाले ऋण एवं लाभार्थी अशंदान के बारे मे अवगत कराया गया। #सिद्ध_बाबा_स्वयं_सहायता_समूह को परियोजना द्वारा संचालित समूह स्तरीय उद्यम स्थापना के अंतर्गत मछली पालन के लिए चयन किया गया। तत्पश्चात परियोजना की टीम द्वारा इनका भौतिक सत्यापन पूर्ण करके मानकानुसार आवश्यक दस्तावेज लिए गए।
गामोत्थान से प्राप्त सहयोग एवं समर्थन से परियोजना द्वारा उद्यम स्थापित करने हेतु रू० 10,00000.00 (दस लाख रूपये) रूपये दिए गए, परियोजना मानकानुसार 60 प्रतिशत की अनुदान धनराशि 6,00000.00 (छः लाख रूपये) तथा 30 प्रतिशत रूपये 3,00000.00 (तीन लाख रूपये) तथा 10 प्रतिशत की धनराशि 1,00000.00 (एक लाख रूपये) समूह द्वारा अशंदान के रुप में अपने व्यवसाय हेतु स्वयं खर्च किये गये।
आर्थिक बदलाव :-
समूह की महिलाओं की मेहनत और समर्पण ने जल्द ही परिणाम दिखाना शुरू किया। महिलाओं द्वारा बताया गया की परियोजना की सहायता के बाद उन्होंने 10-नए तालाबों का निर्माण किया है. और मछलियों की नई प्रजातियों जैसे ग्रास कॉर्प, सिल्वर कॉर्प, ट्राउट, महाशीर पालना शुरू किया हैं।
समूह की अध्यक्ष श्रीमती रेखा देवी ने बताया की अब तक लगभग 6-कुंतल मछली बेचकर 2 लाख 50 हजार रुपये कमा लिए है, जिससे महिलाएं अपने परिवार की आय में योगदान कर पा रही है। अब, समूह की महिलाओं ने मछलियाँ बेचने के लिए स्थानीय बाजारों का रुख किया। मछलियों की मांग बढी और उनके व्यवसाय ने एक नया मोड लिया।
सिद्ध बाबा स्वयं सहायता समूह की महिलाएं समाज में अपनी पहचान बना रही है। शुरू में आय कम थी, लेकिन समय के साथ-साथ मछलियों के उत्पादन में बढोत्तरी हुई है। महिलाएँ न केवल घर के खर्चों में बल्कि अब वे अन्य खर्चे जैसे- बच्चों की शिक्षा, स्वास्थय, पालन-पोषण में भी योगदान दे रही है।
समूह की अध्यक्ष रेखा देवी के अनुसार पहले हम मत्स्य पालन को केवल पुरुषों का ही कार्य समझ रहे थे, लेकिन हमारे समूह की महिलाओं ने परियोजना के सहयोग से न केवल इस गतिविधि का सफल संचालन व प्रबन्धन किया, बल्कि बाजार तक भी अपनी पहुंच बनायी है। इससे अन्य महिलाओं में भी स्वरोजगार करने के लिए प्रेरित हुई है। समूह ने आपसी सहयोग और मेहनत से यह साबित कर दिया कि महिलाएँ किसी भी क्षेत्र में एकजुट होकर भी सफलता हासिल कर सकती हैं।
सिद्ध बाबा स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने अपने पुरुषार्थ के बल पर गांव को मॉडल रूप प्रदान किया। स्वरोजगार को करने से महिलाओं को परिवार के साथ-साथ समाज में भी आत्मसम्मान मिला है। फलस्वरुप इस दूरस्थ ग्राम में सामाजिक व व्यवसायिक क्रियाकलापों मे महिलाओं की सक्रियता बढ़ी है।
मत्स्य पालन गतिविधि से जहां महिलाएँ सामाजिक व आर्थिक रूप से सशक्त हुयी है, वही सामूहिक व्यवसायिक किया कलापों के प्रति समूह ने पूरे क्षेत्र को अपनी एक अलग पहिचान कायम की है।सिद्धबाबा स्वयं सहायता समूह के इस प्रयास से प्रेरित होकर आस पास के अन्य समूह भी मछली पालन के व्यवसाय को शुरू करने के बारे में रूचि ले रही है। उन्होंने अपनी मेहनत और कड़ी मेहनत से साबित कर दिया कि अगर किसी के पास इच्छा शक्ति हो, तो किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है।

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