उत्तराखंड
बंद पड़ी कोयला खदानों में अब सूरज बोलेगा – मेरी बारी!
ई रिपोर्ट में सामने आया 300 गीगावॉट का जबरदस्त मौका
दुनिया भर में जो कोयला खदानें या तो बंद हो चुकी हैं या इस दशक के अंत तक बंद हो जाएंगी, अगर उन्हें सौर ऊर्जा के लिए इस्तेमाल किया जाए — तो इतनी बिजली बन सकती है कि पूरा जर्मनी एक साल तक रोशन रहे!
ये खुलासा किया है Global Energy Monitor (GEM) की नई रिपोर्ट ने।
GEM के मुताबिक़, 2020 के बाद से 312 ऐसी ओपन-पिट कोयला खदानें बंद पड़ी हैं जिनका कुल एरिया 2,000 वर्ग किलोमीटर से ज़्यादा है। अगर इन्हें सोलर पैनल लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाए, तो यहां से 103 गीगावॉट बिजली निकाली जा सकती है।
और यह तो सिर्फ़ शुरुआत है।
2023-30 के बीच दुनिया भर में और भी 3,700 वर्ग किलोमीटर की कोयला खदानें बंद हो सकती हैं। अगर इन जगहों पर भी सोलर पैनल लग जाएं, तो कुल क्षमता 300 गीगावॉट तक पहुँच सकती है — यानी पूरी दुनिया की मौजूदा सोलर क्षमता का 15%।
कौन-कौन से देश हैं इस रेस में आगे?
चीन ने अभी तक सबसे तेज़ी दिखाई है — 90 कोयला-सौर प्रोजेक्ट चालू हो चुके हैं (14 GW), और 46 प्लानिंग में हैं (9 GW)
भारत, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका — ये चार देश इस बदलाव में सबसे बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
क्या फायदा होगा?
पुराने खदान इलाकों की साफ़-सफ़ाई और ज़मीन का दोबारा इस्तेमाल
2.6 लाख स्थायी नौकरियाँ, और 3.1 लाख अस्थायी/निर्माण से जुड़ी नौकरियाँ
स्थानीय अर्थव्यवस्था में जान, पर्यावरण की सेहत में सुधार
GEM के प्रोजेक्ट मैनेजर चेंग चेंग वू कहते हैं —
“कोयले की विरासत ज़मीन में दर्ज है, लेकिन वही ज़मीन अब जलवायु समाधान की ज़मीन बन सकती है।”
रिसर्चर हेली डेरेस के मुताबिक़,
“नई जमीनों को लेकर दुनिया भर में झगड़े हो रहे हैं। लेकिन खदानों जैसी बंजर जगहें हमें एक नया रास्ता दिखा सकती हैं — क्लीन एनर्जी और क्लीन कम्युनिटी का।”
और GEM के असिस्टेंट डायरेक्टर रयान ड्रिस्कल टेट जोड़ते हैं
“जब कोयला कंपनियाँ दिवालिया होती हैं, तो मज़दूरों को निकालकर पीछे बस गंदगी छोड़ जाती हैं। लेकिन यही जगहें अब सोलर से रोशन हो सकती हैं — बस ज़रूरत है सही पॉलिसी मिक्स और राजनीतिक इच्छाशक्ति की।”
भारत के लिए क्या मतलब है?
भारत जहां एक तरफ़ क्लीन एनर्जी की रफ्तार पकड़ने की कोशिश कर रहा है, वहीं ये रिपोर्ट साफ़ दिखाती है कि अगर हम बंद होती खदानों का सही इस्तेमाल करें — तो सौर ऊर्जा और रोज़गार दोनों में क्रांति आ सकती है। बस ज़रूरत है — सोच बदलने की।

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