उत्तरकाशी
राजनीति: कर्नल ही नहीं आप का भविष्य भी तय करेगी गंगोत्री, राष्ट्रीय दलों के सियासी सफर पर पड़ेगा असर…
वरिष्ठ पत्रकार। धनेश कोठारी। देहरादून। आम आदमी पार्टी ने तय किया है कि गंगोत्री विधानसभा के उपचुनाव में अगर उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत मैदान में उतरते हैं तो वह उनके खिलाफ अपने सबसे चर्चित चेहरे कर्नल अजय कोठियाल पर दांव खेलेगी। ऐसा ही हुआ तो जीत किसकी होगी, यह समय ही बताएगा। लेकिन आम आदमी पार्टी की इस घोषणा से कुछ बातें जरूर निकल कर आ रही हैं। आम आदमी पार्टी ने उत्तराखण्ड में 2022 के आम चुनाव में उतरने और सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद जिस तरह से महज छह-सात महीनों में खुद को चर्चाओं में ला दिया, उससे कांग्रेस और भाजपा में बेचैनी स्वाभाविक है। यहां तक कि यूकेडी भी इससे परेशान नजर आ रही है। पार्टी ने राज्य के तेरह जिलों में सांगठनिक विस्तार से पहले नेहरु पर्वतारोहण संस्थान उत्तरकाशी के पूर्व प्रधानाचार्य, केदारनाथ पुनर्निर्माण के नेतृत्वकर्ता और पूर्व सैनिक कर्नल कोठियाल को पार्टी में शामिल किया। जिसके बाद से आप के प्रति आमजन के मन में जरूर कुछ हलचलें शुरू हो चुकी हैं। आम चर्चाओ में कर्नल कोठियाल को आप की ओर से उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री का चेहरा माना जा रहा है। हालांकि पार्टी ने हाल फिलहाल ऐसा कोई ऐलान नहीं किया है कि कर्नल कोठियाल ही उसकी तरफ से सीएम का चेहरा होंगे। मगर, गंगोत्री सीट के उपचुनाव में पार्टी द्वारा कर्नल को उतारे जाने की घोषणा ने जरूर कर्नल और पार्टी दोनों को आम चुनाव से पहले ही ‘लिटमस टेस्ट’ में शामिल कर लिया है।अब बात गंगोत्री उपचुनाव को लेकर सभावित सियासी हालातों की। जो कि उत्तराखण्ड में 2022 के आम चुनाव पर असर डाल सकते हैं। इस सीट पर गर भाजपा से मौजूदा सीएम तीरथ सिंह रावत, आप से कर्नल अजय कोठियाल और कांग्रेस से पूर्व विधायक विजयपाल सजवाण मैदान में आमने सामने रहे तो इस त्रिकोणीय मुकाबले में जीत किसकी होगी, अभी यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन उत्तराखण्ड में आम आदमी पार्टी और कर्नल अजय कोठियाल के राजनीतिक भविष्य को जरूर तय कर देगा। ऐसे में सवाल कि क्या आप की ओर से उत्तराखण्ड में ‘सीएम का संभावित चेहरा’ बनना न बनना गंगोत्री विधानसभा के उपचुनाव के परिणाम से निर्धारित होगा? कर्नल यदि जीत नहीं पाते हैं तो क्या आम आदमी पार्टी ने सीएम के चेहरे के लिए अन्य विकल्प भी तलाशे हुए हैं? यह इसलिए समझना जरूरी है कि अब जब उत्तराखण्ड के आम चुनाव में करीब छह महीने ही बाकी हैं और अभी भी अन्य पार्टियों से भी कई नामचीन चेहरों के आप में आने की अटकलबाजियां जारी हैं, तब कर्नल की महत्वाकांक्षाओं का क्या होगा? इस उपचुनाव पर अकेले कर्नल का ही नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी की उत्तराखंड में राजनीतिक हैसियत और संभावनाएं भी निर्भर हैं। पिछले 20 वर्षों में सत्तासीन हुई भाजपा और कांग्रेस की नीतियों का आलोचक होने के बावजूद और प्रदेश का आमजन विकल्पहीनता के चलते जिस तरह से उन्हें ही बारी-बारी सत्ता सौंपने को मजबूर रहा है, उस लिहाज से आप ने उनके सामने अपने प्रचार तंत्र के जरिए एक संभावना को जरूर रख दिया है। ऐसे में आम चुनाव से पहले क्या गंगोत्री उपचुनाव का रिजल्ट उसके सियासी सफर की दिशा का निर्धारक साबित होगा? कुल मिलाकर जहां गंगोत्री सीट का एक उपचुनाव जितना कर्नल की महत्वाकांक्षाओं का चुनाव साबित हो सकता है, उससे कहीं अधिक भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की परंपरागत राजनीति को भी बदल सकता है। इसके लिए आम चुनाव में कौन अपनी कैसी रणनीति तैयार करेगा? किन मुद्दों और उपलब्धियों को सामने रखेगा? यह सब तय होना है। यह भी कि जनता किसके दावों पर अपनी मुहर लगाएगी, 2022 में इसका परिणाम देखना भी दिलचस्प होगा।
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