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बुजुर्ग पेशेंट पर आंतरिक कैरोटिड आर्टरी स्टेंटिंग की प्रक्रिया सफलतापूर्वक की गई

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बुजुर्ग पेशेंट पर आंतरिक कैरोटिड आर्टरी स्टेंटिंग की प्रक्रिया सफलतापूर्वक की गई

ऋषिकेश: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश के चिकित्सकों ने एक बुजुर्ग पेशेंट पर आंतरिक कैरोटिड आर्टरी (आईसीए) स्टेंटिंग की प्रक्रिया सफलतापूर्वक की है। चिकित्सकों के मुताबिक मरीज की कैरोटिड आर्टरी दिल से दिमाग तक रक्त पहुंचाने वाली नस काफी हद तक सिकुड़ गई थी, जिसके कारण उन्हें पूर्व में स्ट्रोक भी हो चुका था।

सहारनपुर, उत्तर प्रदेश के 70 वर्षीय मरीज श्री जिक्रिया की कैरोटिड आर्टरी 90% तक संकरी हो चुकी थी, जिसके कारण उन्हें कुछ समय पूर्व इस्केमिक स्ट्रोक हुआ था। इस स्थिति में मरीज को बड़े और संभावित घातक स्ट्रोक होने का जोखिम बहुत अधिक बढ़ गया था। लिहाजा कैथेटर और तारों की मदद से, जो जांघ आर्टरी के जरिए डाले गए, समय रहते स्टेंटिंग की गई। इस प्रक्रिया में किसी प्रकार का चीरा लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ी।

न्यूरोसर्जरी विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. निशांत गोयल ने बताया कि “ मरीज की जांच में पाया गया कि मस्तिष्क के बाएं हिस्से की रक्त आपूर्ति पूरी तरह बाईं कैरोटिड आर्टरी पर निर्भर थी और कोई अतिरिक्त रक्त प्रवाह (कोलैटरल सर्कुलेशन) उपलब्ध नहीं था। ऐसे में, कैरोटिड आर्टरी बंद हो जाने पर मरीज को गंभीर और अक्षम करने वाले इस्केमिक स्ट्रोक का खतरा काफी हद तक बढ़ गया था।

लिहाजा इस स्थिति में मरीज के लिए स्टेंटिंग प्रक्रिया जरूरी और जीवनरक्षक थी। चिकित्सक के अनुसार प्रक्रिया कॉर्डियक कैथ लैब में की गई, जिसमें पहले संकरी आर्टरी की बैलून एंजियोप्लास्टी की गई और उसके बाद रक्तप्रवाह को निर्बाध रखने के लिए धातु का स्टेंट लगाया गया।
इस पूरी प्रक्रिया के दौरान एक प्रोटेक्टिव फिल्टर का इस्तेमाल किया गया ताकि मस्तिष्क में एम्बोली न पहुंच पाए। क्योंकि एम्बोली के मस्तिष्क तक पहुंचने से मरीज को स्ट्रोक हो सकता है।

उन्होंने बताया कि कैरोटिड आर्टरी स्टेंटिंग का एक अन्य विकल्प कैरोटिड एंडार्टरैक्टॉमी भी है, जिसमें सर्जरी द्वारा आर्टरी खोलकर प्लाक हटाया जाता है और रक्त वाहिका की मरम्मत की जाती है। एम्स ऋषिकेश में इस तरह के मामलों के लिए उक्त दोनों सुविधाएं उपलब्ध हैं।”
डॉ. गोयल के मुताबिक मरीज का सबसे पहले मूल्यांकन न्यूरोलॉजी विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष डॉ. मृत्युंजय कुमार द्वारा किया गया। उन्होंने बताया कि बीती “6 जुलाई को मरीज को बोली बिगड़ने और दाहिने हाथ की तीसरी, चौथी और पांचवीं उंगली में सुन्नपन की समस्या हुई थी। यह लक्षण लगभग 15 मिनट तक रहे, जो ट्रांजिएंट इस्केमिक अटैक (टीआईए) की ओर संकेत करते हैं।

इसके बाद हालांकि मरीज की बोली में तो सुधार आया, लेकिन उसकी उंगलियों में सुन्नपन की समस्या बनी रही। ऐसे में मरीज की एमआरआई कराने पर ब्रेन में सेंसरी क्षेत्र में छोटे स्ट्रोक दिखाई दिए और सीटी एंजियोग्राम में बाईं कैरोटिड आर्टरी में गंभीर संकुचन दिखाई दिया। इसके बाद मरीज को न्यूरो सर्जरी विभाग में रेफर किया गया।
आगे की जांच पड़ताल के बाद डॉ. निशांत गोयल ने 16 अगस्त को डिजिटल सब्ट्रैक्शन एंजियोग्राफी (डीएसए) कर लगभग 90% ब्लॉकेज की पुष्टि की। मरीज को सात दिनों तक ब्लड थिनर दिए गए और फिर 23 अगस्त को कॉर्डियलॉजी विभाग की कैथ लैब में सफलतापूर्वक कैरोटिड स्टेंटिंग की गई। खासबात यह है कि यह संपूर्ण प्रक्रिया मरीज को जाग्रत अवस्था में की गई ताकि लगातार न्यूरोलॉजिकल निगरानी हो सके। चिकित्सक के मुताबिक मरीज का संपूर्ण उपचार आयुष्मान भारत योजना के तहत किया गया, लिहाजा इस प्रक्रिया के लिए मरीज को कोई खर्च वहन नहीं करना पड़ा।

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स्टेंटिंग प्रक्रिया में टीम को लीड करने वाले न्यूरो सर्जरी विभाग के डॉ. निशांत गोयल के अलावा इसी विभाग के डॉ. श्रीकांत, डॉ. अनिल व डॉ. सिद्धार्थ के अलावा, कार्डियोलॉजी विभाग के डॉ. सुवेन कुमार, एनेस्थीसिया विभाग की डॉ. प्रियंका गुप्ता, डॉ. उमंग तथा कार्डियोलॉजी कैथ लैब नर्स प्रवीण, दीपक, योगिता और कैथ लैब तकनीशियन विपिन शामिल रहे।
इस प्रक्रिया के सफलतापूर्वक संपन्न होने पर अमेरिका से प्रशिक्षित कार्डियोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुवेन कुमार ने कहा कि एम्स अस्पताल में मरीजों को अंतरराष्ट्रीय मानकों पर किफायती इलाज उपलब्ध कराना उत्साहजनक है।
न्यूरोसर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. रजनीश कुमार अरोड़ा ने कहा कि “हमें गर्व है कि विभाग न्यूरोसर्जरी के मरीजों की देखभाल शल्य चिकित्सा और एंडोवास्कुलर दोनों माध्यमों से कर रहा है।”

एम्स अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग में लगी नई बाईप्लेन मशीन में एंडोवास्कुलर न्यूरोसर्जरी (न्यूरो-इंटरवेंशन) सुविधाएं स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालीं कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ.) भानु दुग्गल ने कहा कि “आईसीए स्टेंटिंग एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है, जिसमें सटीकता और धैर्य की आवश्यकता होती है।”
इस सफलता पर चिकित्सकीय टीम को बधाई देते हुए एम्स ऋषिकेश की कार्यकारी निदेशक एवं सीईओ प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह ने कहा कि “यह उपलब्धि संस्थान की उत्तराखंड और आसपास के राज्यों की जनता को उन्नत स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने की निरंतर प्रतिबद्धता को दर्शाती है।”उन्होंने बताया कि संस्थान प्रबंधन एम्स में मरीजों को विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने को लेकर सतत प्रयासरत है।

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प्रक्रिया के बाद श्री जिक्रिया पूरी तरह से स्वस्थ हैं और उन्हें तीसरे दिन अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।
इस दौरान उन्होंने एम्स की चिकित्सकीय टीम का आभार व्यक्त करते हुए बताया कि उक्त प्रक्रिया संपन्न होने के बाद अब उन्हें ऐसा महसूस हो रहा है “मानो सिर से बोझ उतर गया हो।”चिकित्सकों के मुतबिक उन्हें अगले छह महीने तक ब्लड थिनर जारी रखने की सलाह दी गई है, जिसके बाद स्टेंट की स्थिति का आंकलन करने के लिए दोबारा मरीज का एंजियोग्राम किया जाएगा । उसके बाद धीरे धीरे दवा की खुराक घटाई जाएगी, हालांकि उन्हें अभी लंबे समय तक इलाज (दवा लेने) की आवश्यकता रहेगी।

एम्स, ऋषिकेश के चिकित्सकों के मुताबिक भारत में स्ट्रोक एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है। एक अनुमान के अनुसार देश में हर साल लगभग 18–20 लाख लोग स्ट्रोक से ग्रसित होते हैं। जबकि वैश्विक स्तर पर, हर चार मरीजों में से एक वयस्क के जीवनकाल में स्ट्रोक का खतरा रहता है।
कैरोटिड आर्टरी स्टेनोसिस इस्केमिक स्ट्रोक के प्रमुख कारणों में से एक है। ऐसे में समय पर निदान और उपचार, जैसे कि कैरोटिड स्टेंटिंग या एंडार्टरैक्टॉमी गंभीर अथवा घातक स्ट्रोक के खतरे को काफी हद तक कम कर सकते हैं। यह मामला दर्शाता है कि आधुनिक हस्तक्षेप समय रहते बड़े स्ट्रोक को रोक सकते हैं।

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