राजनीतिः देहरादून पहुंचते ही जानिए ऐसा क्या बोले हरीश रावत, जिससे सियासत में मच गया घमासान... - Pahadi Khabarnama पहाड़ी खबरनामा
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राजनीतिः देहरादून पहुंचते ही जानिए ऐसा क्या बोले हरीश रावत, जिससे सियासत में मच गया घमासान…

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राजनीतिः देहरादून पहुंचते ही जानिए ऐसा क्या बोले हरीश रावत, जिससे सियासत में मच गया घमासान…

देहरादूनः उत्तराखंड की राजनीति में कांग्रेस के हर कदम पर सबकी निगाहें टिकी हुई है। लंबे समय से दिल्ली में विचार विमार्श कर प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी करा पूर्व सीएम हरीश रावत देहरादून लौट आए है। जहां हर किसी के दिमाग में एक ही सवाल है कि हरीश रावत किस सीट से चुनाव लड़ेंगे तो वहीं उन्होंने देहरादून लौटते ही अपने बयान से सुर्खियां बटौर ली है। हरीश रावत ने कहा कि जहां कांग्रेस का सब कुछ दांव लगा है तो उनका भी सब कुछ दांव पर लगा है। अब उनके पास समय कम है। मेरे पास अंतिम अवसर है कि मैं, उत्तराखंड के लिये कुछ ऐसा करके जाऊं जिसकी सबको चाहत है।

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एक आवश्यक कर्तव्य की पूर्ति के लिए कुछ दिन दिल्ली में रहने के बाद अब उत्तराखंड के लिए प्रस्थान कर रहा हूंँ, मन बहुत आह्लादित है। चुनाव की प्रक्रिया अब चरम की ओर बढ़ने के लिए तैयार है, 28 जनवरी नामांकन की अंतिम तिथि के बाद हमें सब कुछ चुनाव प्रचार में झौंकना पड़ेगा। इस उद्देश्यपूर्ण प्रस्थान/यात्रा के मौके पर चुपके-चुपके से मेरे कानों में बहुत ही भाव पूर्ण तरीके से कह रहा है कि हरीश रावत कर्मभूमि उत्तराखंड और उत्तराखंडियत तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस चुनाव में यदि कांग्रेस का बहुत कुछ दांव पर है और मेरा भी बहुत कुछ दांव पर है तो उत्तराखंड और उत्तराखंडियत का भी बहुत कुछ दांव पर है। उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था और अनेका अनेक विभागों की आंतरिक व्यवस्थाएं विशेष तौर पर शिक्षा और स्वास्थ्य का ढांचा पूरी तरीके से चरमरा गया है। उत्तराखंडियत, इस सरकार के लिए जो आज है एक अपरिचित शब्द है।

राज्य आंदोलन की भावनाएं, जिन भावनाओं को दूर गांव में रह रहा व्यक्ति याद करने और उन्हें गुनगुनाने का प्रयास कर रहा है, उसके कानों में हर समय सहस्त्र घंटों का उद्घोष “आज दो-अभी दो, उत्तराखंड राज्य दो” गूंज रहा है, उसको लक्ष्यगत उच्चारित नारे उसके मन को गुदगुदा रहे हैं, मगर इन 5 सालों के अंतराल ने उसकी प्रतीक्षा को कि वो भी विकास में सक्रिय साझेदार बन सकेगा, एक सम्मानपूर्ण जिंदगी का हकदार बन सकेगा, उसकी प्रतीक्षा कुछ लंबी होती जा रही है। हरेला, चैतोला, उत्तरायणी, फूलदेई, केवल उस तक सीमित रहती जान पड़ रही है, उसकी अपनी बनाई हुई सरकार इन सरोकारों को भूल रही है, झूमेलो और झोड़ा अब उसे सरकार की प्राथमिकता में नजर नहीं आ रहे हैं, वो प्रतीक्षारत है उन मधुर गीतों और कंठ स्वरों को सुनने के लिए मगर अब सरकार का ध्यान उस तरफ नहीं है, उसके अपने पकवान, परंपरागत अन्न, वस्त्र और आभूषण केवल कुछ लोगों की चर्चाओं में हैं।

 

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