उत्तराखंड
आस्था: पहाड़ की विरासत से जुड़ा 500 साल पुराना हिलजात्रा पर्व, जानिए इसका महत्व और खासियत…
पिथौरागढ़: उत्तराखंड में 500 साल से मनाया जा रहा ऐतिहासिक हिलजात्रा पर्व शुरू हो गया है। आस्था, विश्वास, रहस्य और रोमांच के प्रतीक लोकपर्व हिलजात्रा रविवार को बजेटी में परंपरागत तरीके से शुरू हुई। सोरघाटी पिथौरागढ़ के स्थानीय देवी-देवताओं की विधिवत पूजा अर्चना के बाद खेल मैदान में हिलजात्रा के लिए कलाकार पहुंचे। हिलजात्रा में मुख्य आकर्षण हिरन चीतल रहा। उसके मैदान में आते ही देवी के जयकारों से पूरा मैदान गूंज उठा। लोगों ने भगवान शिव व मां भगवती के जयकारे लगाते हुए उन पर पुष्प वर्षा की।
आपको बता दें कि पहाड़ों में हिलजात्रा को कृषि पर्व के रूप में मनाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है।हिलजात्रा पर्व का आगाज भले ही महरों की बहादुरी से हुआ हो, लेकिन अब इसे कृषि पर्व के रूप में मनाया जाने लगा है। सातू-आंठू से शुरू होने वाले कृषि पर्व का समापन में पिथौरागढ़ में हिलजात्रा के रूप में होता है। इस अनोखे पर्व में बैल, हिरन, लखिया भूत जैसे दर्जनों पात्र मुखौटों के साथ मैदान में उतरकर देखने वालों को रोमांचित कर देते हैं। हिलजात्रा सोर, अस्कोट और सीरा परगना में ही मनाया जाता है। इस बार हिलजात्रा में मुख्य आकर्षण हिरन चीतल रहा। गल्या बैल, बौड़िया हौल, कृषक, हल चलाते हुए किसान व खेतों में काम करती महिलाओं ने सजीव प्रस्तुति दी।गल्या बैल और बौड़िया हौल का अभिनय कर कलाकारों ने भी लोगों का खूब मनोरंजन किया। हिलजात्रा कमेटी के अध्यक्ष नवीन सेठी ने शांति पूर्ण आयोजन पर सभी का आभार जताया।
आपको बता दें कि हिलजात्रा कई स्थानों पर मनाई जाती है, लेकिन सबसे अधिक कुमौड़ की हिलजात्रा की है कहा जाता है कि चार महर भाइयों की वीरता से खुश होकर नेपाल नरेश ने मुखौटों के साथ हिलजात्रा पर्व उपहार में दिया था। घंटों तक चलने वाले हिलजात्रा पर्व का समापन लखिया भूत के आगमन के साथ होता है, जिसे भगवान शिव का गण माना जाता है। लखिया भूत अपनी डरावनी आकृति के बावजूद हिलजात्रा का सबसे बड़ा आकर्षण है। हिलजात्रा आयोजन समिति के अध्यक्ष यशवंत महर बताते हैं कि वक्त के हिलजात्रा पर्व में काफी बदलाव आया, लेकिन लोगों की आस्था इस पर्व को लेकर बढ़ती ही रही है।इस साल भी पिथौरागढ़ के बजेटी में हिलजात्रा को देखने भारी संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ी।
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