Religion: अग्नि देव सिखाते सभ्यता की सीख, सूर्य की भांति सृष्टि की देख रेख करते हैं अग्नि देवता... - Pahadi Khabarnama पहाड़ी खबरनामा
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Religion: अग्नि देव सिखाते सभ्यता की सीख, सूर्य की भांति सृष्टि की देख रेख करते हैं अग्नि देवता…

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Religion: अग्नि देव सिखाते सभ्यता की सीख, सूर्य की भांति सृष्टि की देख रेख करते हैं अग्नि देवता…

Religion: दुनिया की लगभग हर सभ्यता में सूर्य की तरह ही अग्नि का अग्रणी स्थान है। जिस तरह सूर्य सृष्टि के देवता हैं उसी तरह अग्नि सृष्टि की पालक हैं। अग्नि भी सृष्टि के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। शायद इसीलिए हमारी पौराणिक परंपरा में अग्नि को उच्चकोटि का देवता स्वीकारा गया है। हमारे यहां हर कार्य में अग्नि का प्रयोग किया जाता है।

अग्निदेवता यज्ञ के प्रधान अंग हैं। ये सर्वत्र प्रकाश करने वाले एवं सभी पुरुषार्थों को प्रदान करने वाले हैं।वेदों में सर्वप्रथम ऋग्वेद का नाम आता है और उसमें प्रथम शब्द अग्नि ही प्राप्त होता है। अत: यह कहा जा सकता है कि विश्व-साहित्य का प्रथम शब्द अग्नि ही है। ऐतरेय ब्राह्मण आदि ब्राह्मण ग्रन्थों में यह बार-बार कहा गया है कि देवताओं में प्रथम स्थान अग्नि का है।

हवन करने के लिए अग्नि की आवश्यकता होती है। अग्नि देव मनुष्य के जन्म से लेकर मरण तक साथ रहते हैं। कोई भी शुभ कार्य अग्नि देव के रूप में हवन कर किया जाता है। शादी विवाह में अग्नि के ही समक्ष सात फेरे लिए जाते हैं। हिन्दू मान्यता में बिना अग्नि में चिता के जले हुए मुक्ति प्राप्त नहीं होती।

आचार्य यास्क और सायणाचार्य ऋग्वेद के प्रारम्भ में अग्नि की स्तुति का कारण यह बतलाते हैं कि अग्नि ही देवताओं में अग्रणी हैं और सबसे आगे-आगे चलते हैं। युद्ध में सेनापति का काम करते हैं इन्हीं को आगे कर युद्ध करके देवताओं ने असुरों को परास्त किया था।

पुराणों के अनुसार इनकी पत्नी स्वाहा हैं। ये सब देवताओं के मुख हैं और इनमें जो आहुति दी जाती है, वह इन्हीं के द्वारा देवताओं तक पहुँचती है। केवल ऋग्वेद में अग्नि के दो सौ सूक्त प्राप्त होते हैं।

इसी प्रकार यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में भी इनकी स्तुतियाँ प्राप्त होती हैं। ऋग्वेद के प्रथम सूक्त में अग्नि की प्रार्थना करते हुए विश्वामित्र के पुत्र मधुच्छन्दा कहते हैं कि मैं सर्वप्रथम अग्निदेवता की स्तुति करता हूँ, जो सभी यज्ञों के पुरोहित कहे गये हैं। पुरोहित राजा का सर्वप्रथम आचार्य होता है और वह उसके समस्त अभीष्ट को सिद्ध करता है। उसी प्रकार अग्निदेव भी यजमान की समस्त कामनाओं को पूर्ण करते हैं।

अग्निदेव की सात जिह्वाएँ बतायी गयी हैं। उन जिह्वाओं के नाम : – काली,कराली, मनोजवा, सुलोहिता,धूम्रवर्णी, स्फुलिंगी तथा विश्वरुचि हैं।

पुराणों के अनुसार अग्निदेव की पत्नी स्वाहा के पावक, पवमान और शुचि नामक तीन पुत्र हुए। इनके पुत्र-पौत्रों की संख्या उनंचास है।

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