उत्तराखंड में ऐतिहासिक पहल, इस दिन से पहली बार शुरू हो रही शीतकालीन चारधाम यात्रा, जानें डिटेल्स... - Pahadi Khabarnama पहाड़ी खबरनामा
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उत्तराखंड में ऐतिहासिक पहल, इस दिन से पहली बार शुरू हो रही शीतकालीन चारधाम यात्रा, जानें डिटेल्स…

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उत्तराखंड में ऐतिहासिक पहल, इस दिन से पहली बार शुरू हो रही शीतकालीन चारधाम यात्रा, जानें डिटेल्स…

उत्तराखंड में चारधाम यात्रा को लेकर ऐतिहासिक पहल होने जा रही है। बताया जा रहा है कि पूरी दुनिया जब क्रिसमस और न्यू ईयर के जश्न में डूब रही होगी, तब देवभूमि उत्तराखंड में पहली बार ऐतिहासिक शीतकालीन यात्रा की शुरुआत होगी। प्रदेश में 27 दिसंबर से चारधामों की शीतकालीन तीर्थयात्रा शुरू होने जा रही है। चार धाम यात्रा ठंड के मौसम में बंद हो जाती है लेकिन इतिहास में पहली बार ऐसा होने वाला है कि कड़ाके की ठंड के बीच चार धाम यात्रा की शुरुआत होगी।

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मिली जानकारी के अनुसार इस यात्रा की शुरूआत ज्योतिषपीठाधीश्वर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के सान्निध्य में होगी। जगतगुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद यात्रा 27 दिसंबर 2023 से सात दिवसीय यात्रा की शुरुआत करेंगे, इस यात्रा का समापन 2 जनवरी 2024 को होगा। हरिद्वार में श्रीशंकराचार्य मठ से 27 दिसंबर 2023को यात्रा  शुरू होगी। इसके बाद 28 और 29 दिसंबर को उत्तरकाशी, 30 दिसंबर को भगवान केदारनाथ की शीतकालीन पूजा स्थली ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर, 31 दिसंबर को बद्रीकाश्रम हिमालय, नए साल में 1 जनवरी 2024 को ज्योतिर्मठ और 2 जनवरी को हरिद्वार में यात्रा का समापन होगा।

ज्योतिर्मठ के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात कर उन्हें यात्रा का निमंत्रण दिया। इस मौके पर सीएम ने शुभकामनाएं देते हुए कहा कि शीतकालीन तीर्थयात्रा ऐतिहासिक होगी। आदिगुरु शंकराचार्य के ढाई हजार वर्ष पूर्व स्थापित परंपराओं का निर्वहन करते हुए ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य शीतकालीन पूजा स्थलों की तीर्थ यात्रा कर रहे हैं। आदिगुरु शंकराचार्य परंपरा के इतिहास में यह पहला अवसर है, जब ज्योतिषपीठ के आचार्य चारधामों के पूजा स्थलों की तीर्थ यात्रा की जा रही है।

गौरतलब है कि आम धारणा है कि शीतकाल के 6 महीने तक उत्तराखंड के चार धामों की बागडोर देवताओं को सौंप दी जाती है और उन स्थानों पर प्रतिष्ठित चल मूर्तियों को शीतकालीन पूजन स्थलों में विधि-विधान से विराजमान कर दिया जाता है. इन स्थानों पर 6 महीने तक पूजा पाठ पारंपरिक पुजारी ही करते हैं, लेकिन सामान्य लोगों में यह धारणा रहती है कि अब 6 महीने के लिए पट बंद हुए तो देवताओं के दर्शन भी दुर्लभ होंगे।

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